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गुरु अर्जुन देव के शहीदी दिवस पर सबील का आयोजन

अहमदाबाद: बाबा दीप सिंह सेवा ट्रस्ट संगत द्वारा अहमदाबाद के किशोर विद्यालय के समक्ष गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर सबील का आयोजन किया गया। इस अवसर पर समाज के लोगों को सरबत का वितरण किया गया।

गौरतलब है कि 16 जून को गुरु अर्जन देव शहीदी दिवस मनाया जाता है, जो सिख कैलेंडर के तीसरे महीने जेठ के 24वें दिन पड़ता है। यह दिन सबील दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जो पांचवें सिख गुरु के शहीदी दिवस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

गुरु अर्जन देव का जन्म 1563 में गोइंदवाल या तरनतारन जिले में हुआ था। उनके नाना अमरदास थे जो तीसरे सिख गुरु थे, और उनके पिता रामदास जी सिखों के चौथे गुरु थे। अर्जन देव सिखों के पांचवें गुरु और सिख धर्म के पहले शहीद थे जिन्हें मुगल बादशाह जहांगीर के आदेश पर मार दिया गया था। उनकी प्रमुख उपलब्धियों में सिख धर्मग्रंथ आदि ग्रंथ के पहले संस्करण का संकलन शामिल है, जिसे गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से भी जाना जाता है। बाद में आदि ग्रंथ को हरमंदिर साहिब में रखा गया।

सुखमनी साहिब बानी जैसी कई अन्य पुस्तकों के लेखक भी लेखक थे गुरु अर्जन देव जी। उन्होंने स्वयं 2000 भजन लिखे और यह दुनिया के सबसे बड़े भजन संग्रहों में से एक है। उन्हें स्वर्ण मंदिर का नक्शा खुद तैयार करने के लिए भी जाना जाता है, जिसमें उन्होंने गुरुद्वारे में सभी जातियों और धर्मों की स्वीकृति को दर्शाते हुए चारों तरफ दरवाजे बनाए थे। अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के निर्माण के पीछे उनका ही हाथ था। उनकी मृत्यु के बाद, उनके बेटे गुरु हरगोबिंद सिंह ने सिखों के छठे गुरु के रूप में उनका स्थान लिया।

गुरु अर्जन देव का जीवन परिचय:

गुरु अर्जन देव (15 अप्रैल 1563 – 30 मई 1606) सिखों के पांचवें गुरु थे। गुरु अर्जन देव जी शहीदों के सरताज एवं शांति के प्रतीक हैं। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है। गुरुग्रंथ साहिब में तीस रागों में गुरु जी की वाणी संकलित है। गणना की दृष्टि से श्री गुरुग्रंथ साहिब में सर्वाधिक वाणी पंचम गुरु की ही है। ग्रंथ साहिब का सम्पादन गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास की सहायता से 1604 में किया। ग्रंथ साहिब की सम्पादन कला अद्वितीय है, जिसमें गुरु जी की विद्वत्ता झलकती है। उन्होंने रागों के आधार पर ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझबूझ का ही प्रमाण है कि ग्रंथ साहिब में 36 महान वाणीकारों की वाणियाँ बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई।

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