महाराष्ट्र में हाल ही के दिनों में कई ऐसी घटनायें हुई है जिसने राज्य को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है! सत्ता पक्ष के विधायकों ने ऐसी हरकतें और बयानबाज़ी की है और पुलिस स्टेशन और पुलिस मुख्यालय में बैठकर ‘कानून व्यवस्था’ की धज्जियाँ उड़ाई है। कहीं विधायक अपने ही सत्तापक्ष नेता पर गोली चला दी, वह भी पुलिस स्टेशन में अधिकारी के केबिन में! तो कहीं पुलिस पुलिस मुख्यालय में विधायक जी प्रेस कांफ्रेंस लेकर पुलिस पर ही दबाओ बनाते और गरियाते नज़र आये। तो मुख्यालय के बाहर विधायिका जी पुलिस से एक विशेष समुदाय को ख़त्म करने के लिए ‘५ मिनट’ का समय मांगती नज़र आयी. वह भी ‘अहिंसा परमो धर्म’ को मानने वाले समुदाय से आने वाली महिला विधायिका। यह घटनायें न केवल गंभीर है, बल्कि यह भी दिखा रहा है कि महाराष्ट्र में ‘लॉ एंड ऑर्डर’ की कितनी गंभीर स्थिति हो गई है. उससे भी गंभीर बात ये है की तीनों विधायक उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस की पार्टी बीजेपी से हैं। विपक्ष का फ़्रस्ट्रेशन में ऐसा बयान समझ में आता है, पर सत्तापक्ष? आईपीएस रैंक के क़द्दावर अधिकारी भी सत्ता के दबाओ में काम कर रहे हैं साफ़ दिखाई दे रहा है।
बीजेपी विधायक गणपत गायकवाड़ ने उल्हासनगर के पुलिस स्टेशन में शिवसेना के ज़िलाध्यक्ष और पूर्व नगरसेवक महेश गायकवाड़ पर गोली चलाई है, जो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बेटे डॉ श्रीकांत शिंदे के लोकसभा क्षेत्र के नेता हैं, और मुख्यमंत्री के करीबी है। वहीँ विधायक उपमुख्यमंत्री फडणवीस के करीबी हैं। बीजेपी के बॉस ‘सागर’ बंगले में बैठे हैं और शिंदे गुट के बॉस ‘वर्षा’ बंगले में हैं. इसलिए दोनों पार्टियों के विधायकों और पदाधिकारियों को यह भरोसा दिख रहा है कि राज्य में पुलिस और कानून को ताक पर रखकर हम नाच और दूसरों को नचा सकते हैं.
गृह मंत्री की पार्टी के विधायक थाने में मुख्यमंत्री के आदमी पर गोली चलाते हैं? महाराष्ट्र में क़ानून व्यवस्था को लेकर इतनी परेशानी कभी नहीं हुई! एक विधायक पिस्तौल निकालकर गणपति के जुलूस को धमकाता है। एक विधायक बड़े गर्व से कार्यकर्ताओं से कहते हैं, ‘संघर्ष करो, केस के बाद जमानत कराऊंगा।’ एक विधायक युवाओं से बच्चों के अपहरण की बात करते हैं। एक विधायक ने विपक्षी महिला सांसदों को अपशब्द कहे। एक विधायिका एक सरकारी जूनियर इंजीनियर को कान के नीचे मारती है. कोंकण के स्वयंभू भविष्यवक्ता, सांसद, विधायक, पिता-पुत्र सभी को दिन-रात धमकाते रहते हैं। मुख्यमंत्री और दो ‘डिप्टी’ ‘शासन आपले द्वारे’ कहते हुए गांव-गांव प्रचार करने निकले। हालाँकि, इसमें विरोधी पक्ष के नेताओं की भी गलती है। सिर्फ विकास के नाम का रोना रो रहे हैं और कोई कानून व्यवस्था पर बात नहीं करना चाहता। विपक्ष भी सिर्फ अपना कर्मकांड छुपाने में लगा हुआ है।
इस घटना ने स्पष्ट रूप से यह दिखा दिया है कि सत्ता के क्षेत्र में किसी भी हद तक जाना एक स्वाभाविक हो गया है. गायकवाड़ ने स्वयं को निर्दोष बताया है और उनका आरोप है कि मुख्यमंत्री ने उन्हें गुनाहगार बताकर अवैध धराएं लगाई हैं. इससे यह प्रतित हो रहा है कि महाराष्ट्र में कानून और पुलिस अब सत्ता के दबाव में हैं और हम सब को इससे सावधान रहना होगा।
इन घटनाओं के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या महाराष्ट्र में सरकार की स्थिति इतनी दुर्बल हो गई है कि सत्ता पक्ष के विधायकों को ‘रोकने’ का साहस तक नहीं जुटा पा रहे हैं? यह सवाल न केवल राजनीतिक परिस्थितियों को लेकर है, बल्कि इससे यह भी साबित हो रहा है कि क्या कानून व्यवस्था में भी कुछ गंभीर समस्याएं हैं.
अब तेलंगाना के विधायक टी राजा सिंह सोशल मीडिया में वायरल हो रहे १:१० मिनट के वीडियो में पुलिस व्यवस्था को ललकार रहे हैं। ‘जिसमें दम है मुझे १९ (फ़रवरी) तारीख को मीरा रोड में आने से रोक ले।’ १ लाख कार्यकर्ताओं के साथ आने की बात तेलंगाना का ये विधायक कर रहा है। गृहमंत्री और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को मीटिंग लेकर ऐसे विवादस्पद लोगों को रोकना चाहिए। मीरा रोड में अमन चैन है और ऐसे लोगों को खुली छूट, माहौल ख़राब कर सकते हैं। अगर गृह विभाग कुछ नहीं कर सकता तो राज्य के मुख्या के तौर पर मुख्यमंत्री जी को आगे आना चाहिए और ऐसे बाहरी लोगों से अपने स्टेट को बचाना चाहिए।
यह घटना महाराष्ट्र को हिला देने वाली है और सामाजिक मीडिया पर इसकी चर्चा हो रही है। इससे साफ है कि राजनीति में नहीं, बल्कि कानून और व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है ताकि लोग अपने नेताओं और सरकार पर भरोसा कर सकें।